श्रीलाल शुक्ल कहानीकार के साथ-साथ उपन्यासकार भी है। उनके उपन्यास में व्याख्यात्मक शैली दिखाई पड़ती है। कहीं-कहीं पर विशुद्ध हास्य उत्पन्न करते हैं। उनका राग दरबारी प्रमुख उपन्यास है। इन्होंने अपने राग दरबारी उपन्यास में मानव हृदय की विभिन्न भावभूमियों का उद्घाटन किया है।
वहीं सामाजिक यथार्थ से पीड़ित शिवपाल गंज जैसे अनेक गांव में रहने वालों की व्यथा कथा कही है। राग दरबारी में विपरीत परिस्थितियों से जूझते हुए अनवरत संघर्ष करने की प्रेरणा मिलती है। लेखक का यही भाव है कि व्यक्ति को हार जीत को छोड़कर निरंतर कर्म करना चाहिए। वह एक यथार्थवादी उपन्यासकार हैं।
राग दरबारी उपन्यास में स्थान स्थान पर लेखक ने सामाजिक यथार्थ का वास्तविक मूर्त चित्रण किया है। वह यथार्थ कहीं-कहीं कठोर हो जाता है और मन को झकझोर कर रख देता है। परंतु उससे पलायन का कोई रास्ता नहीं है पाठक को उसे स्वीकार करना पड़ता है। सामाजिक यथार्थ की जो अभिव्यक्ति व्यंग्यात्मक विधि से श्री लाल ने की है वहां उन्हें हिंदी उपन्यासकारों में एक विशिष्ट स्थान प्रदान करती है।