विश्व में असमानता सार्वभौमिक है। कोई भी दो वस्तुएं सामान नहीं होती हैं जुड़वा बच्चे भी असामान्य होते हैं प्रत्येक स्तर पर विषमता दृष्टि गत होती है। व्यक्ति तथा समाज स्तर पर भी असमानता होती है समाज चाहे लोकतांत्रिक साम्यवादी या समाजवादी कैसा भी हो उसमें असमानता विद्यमान रहती है मानवीय समानता के समर्थन कर्ताओं का तर्क है कि सभी जीव प्रकृति ने बनाए हैं अता सभी को सामान समझ समझा जाना चाहिए।
आंध्र वेत्ताई के अनुसार आधुनिक विश्व का महान विरोधाभास यह है कि हर स्थान पर मनुष्य स्वयं को समानता के सिद्धांत का समर्थक बनाता है और प्रत्येक स्थान पर वे अपने जीवन में तथा दूसरे के जीवन में असमानता की विद मानता का सामना करते हैं।
असमानता सार्वभौमिक है । इनकी विद मानता सर्वत्र है दुनिया का कोई भी समाज हर दृष्टि से सामान नहीं है।
जात की समानता अथवा जाति असमानता में दो शब्द जाति तथा समानता शामिल है जात की असमानता को विस्तार से जानने हेतु जाति तथा असमानता को नीचे स्पष्ट किया जा रहा है
जात का अर्थ-जात का अध्ययन अनेक भारतीय तथा विदेशी विद्वानों ने किया है इसकी जटिलता व विस्तार को दृष्टि में रखकर इसके समुचित अध्ययन के लिए हटन के अनुसार विशेषज्ञों की एक सेना चाहिए जाति का अर्थ की दृष्टि में स्पष्ट किया जा सकता है
1-शाब्दिक दृष्टि से-अंग्रेजी भाषा का कास्ट शब्द स्पेनिश भाषा के कास्ट से निर्मित है जिसका अर्थ होता है प्रजाति अथवा नस्ल इस अर्थ में जाति शब्द का प्रयोग नहीं होता इससे तो जात शब्द ही एक अवधारणा को अधिक स्पष्ट करता है क्योंकि जाति में जन्म पर बल दिया जाता है और हम जानते हैं कि जाति का निर्धारण जन्म से होता है 2- परिभाषित दृष्टि से-पारिभाषिक दृष्टि से जात की अनेक व्याख्या मिलती हैं इनमें से कुछ जाति को वर्ग के संदर्भ में स्पष्ट करती है और दूसरी जाति को प्रमुख विशेषताओं के द्वारा जात की कुछ प्रमुख और संक्षिप्त परिभाषाएं निम्न है
मार्टिन्डेल व मोनीकेसीके अनुसार जाति का अर्थ ऐसे मानव समूह से है जिसके विशेषाधिकार तथा दायित्व जन्म से निश्चित होते हैं तथा धर्म व जादू टोने द्वारा समर्थित व अनुमोदित होते हैं।
मजूमदार तथा मदन वर्क के संदर्भ में जात की व्याख्या करते हुए कहते हैं जाति एक बंद वर्ग है
होबेल ने जात की परिभाषा इस प्रकार की है अंत विवाह और वंशानुसंक्रमण के द्वारा प्रदत्त पद की सहायता से सामाजिक वर्गों को स्थिर व स्थायी कर देना ही जाति है।
गोले का कहना है जब कोई वर्ग बहुत कुछ अनुवांशिक हो जाता है तो हम उसे जाति कह सकते हैं
उपरोक्त परिभाषा ओं का विशेषण करने से यह पता चलता है कि मां मार्टिन्डेल ने जाती की एक विशेषता को ही अपनी परिभाषा का आधार बताया है वह है जन्म से जाति का निर्धारण जन्म से जाति का निर्धारण एक महत्वपूर्ण तत्व है किंतु अंतर विवाह तथा खान-पान मेल मिलाप के नियम और निषेध का जाति मेकरम महत्व नहीं असमानता का आशय एवं परिभाषा को नीचे निम्न प्रकार दिया है।
असमानता का आशय उस दशा से है जो समान नहीं होती सामाजिक वर्ग को असमानता का ही रूप माना जाता है असमानता का कारण यह भी हो सकता है कि हर व्यक्ति दूसरे की अपेक्षा स्वयं को बेहतर समझने व बनाने का प्रयास करता है आसमान होने की दशा अथवा स्थिति अथवा समानता का अभाव असमानता है।
जाति असमानता के कारण