पाक शास्त्र, कामशास्त्र, गंधर्व शास्त्र, नाट्य शास्त्र, आयुर्वेद, भवन निर्माण शास्त्र, आदि वस्तुओं में छंद, अलंकार, काव्य, तर्क, व्याकरण इत्यादि में तथा कलाओं के समस्त गुणों में गणित की उपयोगिता है।
सूर्य आदि ग्रहों की गति ज्ञात करने में, चंद्रमा के परीले याद में गणित की आवश्यकता होती है। द्वीपों, पर्वतों, समुद्रों की संख्या, ब्याज एवं परिधि सभा भवनों एवं गुंबदाकार मंदिरों के परिमाण तथा अन्य बातें गणित की सहायता से जानी जाती हैं। वहां पर प्राणियों के संस्थान उनकी आयु एवं 8 गुण, मात्रा तथा संहिता आदि के संबंध रखने वाले विषय सभी गणित पर निर्भर है।
अन्य क्या कहें इस चराचर त्रिलोक के में जो भी वस्तु है उसका अस्तित्व गणित के बिना नहीं हो सकता।” इस कथन से वैदिक गणित की उपादेयता एवं प्रासंगिकता प्रमाणित होती है।