आस्था की जड़ता को वे दो रूपों में देखते हैं। इनके अनुसार आस्था की जड़ता एक और मनुष्य को अतीत के सुनहरे सपनों में डूब होती है। तो दूसरी ओर कुंठा, निराशा और अवसाद भी उत्पन्न करती है।
यह दोनों स्थितियां मनुष्य को निष्क्रिय बनाती हैं। सचेतन कहानी इसी निष्क्रियता का विरोध करती है। सचेतन कहानी के प्रवक्ताओं में महीप सिंह के अतिरिक्त लक्ष्मी सागर वाष्र्णेय, राजीव सक्सेना, उपेंद्र नाथ अश्क, श्याम परमार आदि हैं।