
कक्षा 9 लेखकों का जीवन परिचय
UP Board के कक्षा 9 के पाठ्यक्रम में गद्य तथा पद्य में कुल 21 लेखको की जीवनी दी गयी है। जिनमे से गद्य से तथा पद्य से अलग अलग 1-1 जीवनी परीक्षा में पूछी जाती है। कक्षा 9 लेखकों का जीवन परिचय कुल 6 अंक का पूछा जाता है। लेखकों तथा कवियों के जीवन परिचय से क्रमशाः 3 और 3 अंक के प्रश्न पूछे जाते है। यहाँ सभी रचनाकारों की रचनाएँ सहित उनका जीवन परिचय सरल भाषा में दिया जा रहा है।
कक्षा 9 लेखकों का जीवन परिचय

गद्य के लेखक
पंडित प्रताप नारायण मिश्र

वह भारतेंदु निर्मित एवं प्रेरित हिंदी लेखकों की सेना के महारथी, उनके आदर्शो के अनुगामी और आधुनिक हिंदी भाषा तथा साहित्य के निर्माणक्रम में उनके सहयोगी थे। भारतेंदु पर उनकी अनन्य श्रद्धा थी, वह अपने आप को उनका शिष्य कहते तथा देवता की भाँति उनका स्मरण करते थे। भारतेंदु जैसी रचनाशैली, विषयवस्तु और भाषागत विशेषताओं के कारण मिश्र जी "प्रति-भारतेंदु" और "द्वितीय हरिश्चंद्र" कहे जाने लगे थे।
मिश्रा जी की प्रारंभिक शिक्षा कानपुर में हुई। इनके पिता इन्हें ज्योतिष ज्ञान कराकर पैतृक व्यवसाय में लगाना चाहते थे। परंतु मनमौजी स्वभाव होने के कारण मिश्र जी ने स्वाध्याय से ही संस्कृत उर्दू फारसी अंग्रेजी और बांग्ला भाषा का ज्ञान प्राप्त किया।
- गो संकट,
- भारत दुर्दशा,
- कलिकौतुक,
- कलिप्रभाव,
- हठी हम्मीर
- जुआरी-खुआरी (प्रहसन)
- संगीत शाकुंतल (कालिदास के 'अभिज्ञानशाकुंतम्' का अनुवाद)
- निबंध नवनीत,
- प्रताप पीयूष,
- प्रताप समीक्षा
- राजसिंह,
- अमरसिंह,
- इन्दिरा,
- राधारानी,
- युगलांगुरीय,
- चरिताष्टक,
- पंचामृत,
- नीतिरत्नमाला,
- बात
- प्रेम पुष्पावली,
- मन की लहर,
- ब्रैडला स्वागत,
- दंगल खंड,
- तृप्यन्ताम्,
- लोकोक्तिशतक,
- दीवो बरहमन (उर्दू)
मुंशी प्रेमचंद्र

प्रेमचंद हिन्दी और उर्दू के सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यासकार, कहानीकार एवं विचारक थे। उनमें से अधिकांश हिंदी तथा उर्दू दोनों भाषाओं में प्रकाशित हुईं। उन्होंने अपने दौर की सभी प्रमुख उर्दू और हिंदी पत्रिकाओं जमाना, सरस्वती, माधुरी, मर्यादा, चाँद, सुधा आदि में लिखा। उन्होंने हिंदी समाचार पत्र जागरण तथा साहित्यिक पत्रिका हंस का संपादन और प्रकाशन भी किया। इसके लिए उन्होंने सरस्वती प्रेस खरीदा जो बाद में घाटे में रहा और बंद करना पड़ा। प्रेमचंद फिल्मों की पटकथा लिखने मुंबई आए और लगभग तीन वर्ष तक रहे। जीवन के अंतिम दिनों तक वे साहित्य सृजन में लगे रहे। महाजनी सभ्यता उनका अंतिम निबंध, साहित्य का उद्देश्य अंतिम व्याख्यान, कफन अंतिम कहानी, गोदान अंतिम पूर्ण उपन्यास तथा मंगलसूत्र अंतिम अपूर्ण उपन्यास माना जाता है।
1906 से 1936 के बीच लिखा गया प्रेमचंद का साहित्य इन तीस वर्षों का सामाजिक सांस्कृतिक दस्तावेज है। इसमें उस दौर के समाजसुधार आंदोलनों, स्वाधीनता संग्राम तथा प्रगतिवादी आंदोलनों के सामाजिक प्रभावों का स्पष्ट चित्रण है। उनमें दहेज, अनमेल विवाह, पराधीनता, लगान, छूआछूत, जाति भेद, विधवा विवाह, आधुनिकता, स्त्री-पुरुष समानता, आदि उस दौर की सभी प्रमुख समस्याओं का चित्रण मिलता है। आदर्शोन्मुख यथार्थवाद उनके साहित्य की मुख्य विशेषता है। हिंदी कहानी तथा उपन्यास के क्षेत्र में 1918 से 1936 तक के कालखंड को 'प्रेमचंद युग' कहा जाता है।
प्रेमचंद के जीवन का साहित्य से क्या संबंध है इस बात की पुष्टि रामविलास शर्मा के इस कथन से होती है कि-
सौतेली माँ का व्यवहार, बचपन में शादी, पंडे-पुरोहित का कर्मकांड, किसानों और क्लर्कों का दुखी जीवन
- यह सब प्रेमचंद ने सोलह साल की उम्र में ही देख लिया था। इसीलिए उनके ये अनुभव एक जबर्दस्त सचाई लिए हुए उनके कथा-साहित्य में झलक उठे थे।
- उनकी बचपन से ही पढ़ने में बहुत रुचि थी।
- 13 साल की उम्र में ही उन्होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ 'शरसार', मिर्ज़ा हादी रुस्वा और मौलाना शरर के उपन्यासों से परिचय प्राप्त कर लिया।
- उनका पहला विवाह पंद्रह साल की उम्र में हुआ।
- 1906 में उनका दूसरा विवाह शिवरानी देवी से हुआ जो बाल-विधवा थीं।
- वे सुशिक्षित महिला थीं जिन्होंने कुछ कहानियाँ और प्रेमचंद घर में शीर्षक पुस्तक भी लिखी।
- 1898 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वे एक स्थानीय विद्यालय में शिक्षक नियुक्त हो गए।
- नौकरी के साथ ही उन्होंने पढ़ाई जारी रखी।
- उनकी शिक्षा के संदर्भ में रामविलास शर्मा लिखते हैं कि- "1910 में अंग्रेज़ी, दर्शन, फ़ारसी और इतिहास लेकर इंटर किया और 1919 में अंग्रेज़ी, फ़ारसी और इतिहास लेकर बी. ए. किया।"
- 1919 में बी.ए. पास करने के बाद वे शिक्षा विभाग के इंस्पेक्टर पद पर नियुक्त हुए।
मुंशी जी ने डेढ़ दर्जन से ज़्यादा तक उपन्यास लिखे।
- सेवासदन
- प्रेमाश्रम
- रंगभूमि
- निर्मला
- गबन
- कर्मभूमि
- गोदान
- कायाकल्प
- प्रतिज्ञा
- निर्मला
- रूठी रानी
- मंगलसूत्र (अपूर्ण) जिसे उनके पुत्र अमृतराय ने पूरा किया।
प्रेमचंद ने तीन सौ से अधिक कहानियाँ लिखीं जिनमे मुख्य रूप से निम्न कहानियो की रचना की-
- कफन
- पूस की रात
- पंच परमेश्वर
- बड़े घर की बेटी
- बूढ़ी काकी
- दो बैलों की कथा
- संग्राम
- कर्बला
- प्रेम की वेदी
हजारी प्रसाद द्विवेदी

द्विवेदी जी का व्यक्तित्व बड़ा प्रभावशाली और उनका स्वभाव बड़ा सरल और उदार था। वे हिंदी, अंग्रेज़ी, संस्कृत और बाङ्ला भाषाओं के विद्वान थे। भक्तिकालीन साहित्य का उन्हें अच्छा ज्ञान था।
द्विवेदी जी ने इंटर तक की शिक्षा प्राप्त करके ज्योतिष शास्त्र में आचार्य की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। सन 1940 से 1950 ईस्वी तक वे शांतिनिकेतन में हिंदी विभाग के निदेशक के रूप में रहे। यही इनकी साहित्य प्रतिभा का विकास हुआ। उसके बाद द्विवेदी जी को सन 1949 ईस्वी में लखनऊ विश्वविद्यालय ने डी लिट की उपाधि से विभूषित किया। इन्होंने काशी विश्वविद्यालय कथा चंडीगढ़ विश्वविद्यालय में हिंदी के अध्यक्ष पद पर कार्य किया।
- अशोक के फूल
- कल्पलता
- विचार और वितर्क
- विचार-प्रवाह
- कुटज
- विश के दन्त
- कल्पतरु
- गतिशील चिंतन
- साहित्य सहचर
- बाणभट्ट की आत्मकथा
- चारु चंद्रलेख
- पुनर्नवा
- अनामदास का पोथा
- हजारीप्रसाद द्विवेदी ग्रन्थावली
महादेवी वर्मा

आधुनिक युग की मीरा के नाम से प्रसिद्ध महादेवी वर्मा का हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान है।कवि निराला ने उन्हें “हिन्दी के विशाल मन्दिर की सरस्वती भी कहा है। उनकी काव्य रचनाओं में नारी हृदय की वेदना का अत्यंत मार्मिक चित्रण मिलता है। हिंदी को इनकी अभूतपूर्व देन इनके रेखाचित्र हैं।
- महादेवी जी की शिक्षा इंदौर में मिशन स्कूल से प्रारम्भ हुई साथ ही संस्कृत, अंग्रेज़ी, संगीत तथा चित्रकला की शिक्षा अध्यापकों द्वारा घर पर ही दी जाती रही।
- बीच में विवाह जैसी बाधा पड़ जाने के कारण कुछ दिन शिक्षा स्थगित रही। विवाहोपरान्त महादेवी जी ने १९१९ में क्रास्थवेट कॉलेज इलाहाबाद में प्रवेश लिया।
- महादेवी जी ने सन 1933 ई॰ में इलाहाबाद विश्व विद्यालय से संस्कृत में एम॰ए॰ प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण किया।
- साहित्य की प्रारम्भिक शिक्षा इन्हें परिवार से प्राप्त हुई।
- नीहार
- रश्मि
- नीरजा
- सांध्यगीत
- दीपशिखा
- सप्तपर्णा अनूदित-
- प्रथम आयाम
- अग्निरेखा
- अतीत के चलचित्र
- स्मृति की रेखाएं
- पथ के साथी
- मेरा परिवार
- संस्मरण
- शृंखला की कड़ियाँ (१९४२),
- विवेचनात्मक गद्य (१९४२),
- साहित्यकार की आस्था
- अन्य निबंध (१९६२),
- संकल्पिता (१९६९)
- गिल्लू
- चुने हुए भाषणों का संकलन: संभाषण
- ललित निबंध: क्षणदा
- संस्मरण, रेखाचित्र और निबंधों का संग्रह: हिमालय
काका कालेलकर

काका कालेलकर सच्चे बुद्धिजीवी व्यक्ति थे। लिखना सदा से उनका व्यसन रहा। सार्वजनिक कार्य की अनिश्चितता और व्यस्तताओं के बावजूद यदि उन्होंने बीस से ऊपर ग्रंथों की रचना कर डाली इस पर किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। इनमें से कम-से-कम 5-6 उन्होंने मूल रूप से हिंदी में लिखी। यहाँ इस बात का उल्लेख भी अनुपयुक्त न होगा कि दो-चार को छोड़ बाकी ग्रंथों का अनुवाद स्वयं काका साहब ने किया, अतः मौलिक हो या अनूदित वह काका साहब की ही भाषा शैली का परिचायक हैं। हिंदी में यात्रा-साहित्य का अभी तक अभाव रहा है। इस कमी को काका साहब ने बहुत हदतक पूरा किया। उनकी अधिकांश पुस्तकें और लेख यात्रा के वर्णन अथवा लोक-जीवन के अनुभवों के आधार पर लिख गए। हिंदी, हिंदुस्तानी के संबंध में भी उन्होंने कई लेख लिखे।
इनका परिवार मूल रूप से कर्नाटक के करवार जिले का रहने वाला था और उनकी मातृभाषा कोंकणी थी। लेकिन सालों से गुजरात में बस जाने के कारण गुजराती भाषा पर उनका बहुत अच्छा अधिकार था और वे गुजराती के प्रख्यात लेखक समझे जाते थे।
जिन नेताओं ने राष्ट्रभाषा प्रचार के कार्य में विशेष दिलचस्पी ली और अपना समय अधिकतर इसी काम को दिया, उनमें प्रमुख काकासाहब कालेलकर का नाम आता है। उन्होंने राष्ट्रभाषा के प्रचार को राष्ट्रीय कार्यक्रम के अंतर्गत माना है। दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के अधिवेशन में (1938) भाषण देते हुए उन्होंने कहा था, हमारा राष्ट्रभाषा प्रचार एक राष्ट्रीय कार्यक्रम है।
उन्होंने पहले स्वयं हिंदी सीखी और फिर कई वर्षतक दक्षिण में सम्मेलन की ओर से प्रचार-कार्य किया। अपनी सूझ-बूझ, विलक्षणता और व्यापक अध्ययन के कारण उनकी गणना प्रमुख अध्यापकों और व्यवस्थापकों में होने लगी। हिंदी-प्रचार के कार्य में जहाँ कहीं कोई दोष दिखाई देते अथवा किन्हीं कारणों से उसकी प्रगति रुक जाती, गांधी जी काका कालेलकर को जाँच के लिए वहीं भेजते। इस प्रकार के नाज़ुक काम काका कालेलकर ने सदा सफलता से किए।
- हिमालयनो प्रवास
- जीवन-व्यवस्था
- पूर्व अफ्रीकामां
- जीवनानो आनन्द
- जीवत तेहवारो
- मारा संस्मरणो
- उगमानो देश
- ओत्तेराती दिवारो
- महात्मा गांधी का स्वदेशी धर्म
- राष्ट्रीय शिक्षा का आदर्श
- स्मरण यात्रा
- उत्तरेकादिल भिन्टी
- हिन्दलग्याचा प्रसाद
- लोकमाता
- लतान्चे ताण्डव
- हिमालयतिल प्रवास
रवींद्र नाथ टैगोर

रबीन्द्रनाथ ठाकुर विश्वविख्यात कवि, साहित्यकार, दार्शनिक और भारतीय साहित्य के नोबल पुरस्कार विजेता हैं। उन्हें गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है। बांग्ला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नयी जान फूँकने वाले युगदृष्टा थे। वे एशिया के प्रथम नोबेल पुरस्कार सम्मानित व्यक्ति हैं। वे एकमात्र कवि हैं जिसकी दो रचनाएँ दो देशों का राष्ट्रगान बनीं - भारत का राष्ट्र-गान 'जन गण मन' और बाँग्लादेश का राष्ट्रीय गान 'आमार सोनार बाँग्ला' गुरुदेव की ही रचनाएँ हैं।
इनकी प्रारंभिक शिक्षा बांग्ला भाषा में घर पर ही हुई। प्रारंभिक शिक्षा समाप्त होने के पश्चात इनका प्रवेश पहले कोलकाता के ओरिएंटल सेमिनार विद्यालय और फिर नॉर्मल विद्यालय में कराया गया। विद्यालय वातावरण में इनका मन नहीं लगता था, अतः इनको एकांत बहुत प्रिय था। विद्यालय शिक्षा समाप्त करने के पश्चात इनके पिता ने बैरिस्टर की पढ़ाई के लिए इन्हें इंग्लैंड भेजा, किंतु यह बैरिस्टर ई की डिग्री पूरी किए बिना ही वापस चले आए। इन्होंने घर पर रहकर ही हिंदी साहित्य में कई योगदान दिए।